गुरुवार, मई 07, 2020

आग बुझ तो गई पर ...

 आग 
 जंगल में लगी थी ...
देख रहे थे 
तमाशाई सब !

उड़ तो गए पंछी 
सभी ... पर 
झुलस गए पेड़ 
जल गए घोसले 
मर  गए चूज़े !

दिशाहीन दौड़ 
जंगली जानवरों को 
थकाकर मार गई 
सबको ... और 
लपटें छूती रहीं 
आसमान को !

बच गए चाँद तारे 
दूर   बसे लोग 
नदी -तालाब -झरने 
हवा बहती रही !

फिर ?
आग बुझ गई ?
राख  हो गया सब ?
लोगों ने क्या किया ?
आग  लगी कैसे  थी ?
कब की बात है ये ?

अरे ! ये क्या !
राजन भूल गए 
उन्हें चुप रहना है !
हमेशा सवाल 
वेताल करता है 
आज उसीसे पूछ बैठे ?

बेताल झाड़ पर 
फिर उल्टा लटक गया 
 उसने दु:खी  होकर कहा 
राजन .....आग 
बस्ती में फ़ैल गई ...
कुछ जलके मर गए ...
कुछ भाग गए 
और कुछ 
आग बुझाने में लग गए !
आग बुझ तो गई पर 
बुझाने वाले 
कुछ  जलकर 
कुछ थककर 
कुछ प्यास से
मर रहे हैं ... अब भी ...
------------------------------ दोस्तों ये आग १३४७  के प्लेग  की  हो या १९१८ के इन्फ्लुएंजा  की या फिर 2020 के  कोरोना  की ...... बुझना  तय  है ! हम कितना   नुकसान  उठाएंगे ...कैसे  भरपाई  करेंगे ये  सब सवाल वक्त के उस तरफ  हैं ! इधर  हम और आप  हैं . हम कौन हैं ,किनमे  से हैं ,क्या चाहते  हैं और क्या  योगदान  है हमारा ?
      ये योगदान वाले सवाल पार "यदि  हम मौन है तो हमें ये चुप नहीं  तोड़नी  चाहिए.... जब तक कि आग पर काबू ना पा लिया जाए " 
____________________________________ डॉ.प्रतिभा स्वाति