गुरुवार, मई 04, 2017

सखि ,यार तेरा ... माटी का पुतला



      
शस्त्र - पूजन हो चुका ...
अब धनुष उठाएं आप !
राक्षसों के संहार का ...
कभी न लगता पाप !

शांति-माला बहुत जपी ..
पर दुश्मन बेहद नीच !
धनुष उठाए क्या खड़ा ..
जल्दी शर को खींच !
______________ माना बहुत सीमाएं है ... अटकल और अडचने हैं ......... रणभेरी नहीं बजा सकते हम ! हम युद्ध नहीं चाहते ... तमाम दबाव हैं हम पर .......... पर ..... 
_____________ ये जो शहीद हो रहे हैं ? सैनिक हैं या गुड्डे ? नुमाईश के लिए तैनात हैं ? सतर्क नहीं ? सरहद पर हैं ... अपने घर पे नहीं ... शत्रु सिर पे है .... यदि उनको ये याद है तो  ,जवाब क्यूँ नहीं देते ? एक बार धोका हुआ .... ये तो रोज का किस्सा बन गया है ? जब अभी ख़ुद को नही  बचा पा रहे ,तब युद्ध में इनसे क्या उम्मीद रखे देश ............... मुआफ़ कीजिये .... इस शहादत की कहानी की पुनरावृत्ति हुई तो , .... अब सलामी और मुआवज़ा बेमानी होगा .......... 
__________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति

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