ये एक दर्जन आँखें
कर रही हैं मुझसे
सैकड़ों सवाल !
और मैं निरुत्तर .....
बात सवाल या
जवाब की नहीं
दरअसल अहम
वो मुद्दा है जो
उठ रहा है ....
इंसानियत का !
इंसां की नीयत का !
इनसान हूँ , तो फ़िर
मेरा फ़र्ज़ है , आख़िर
देना सवालों के जवाब ?
लेकिन मैं नहीं देती
दे सकती हूँ जवाब !
मग़र ... अब नहीं
खोज रही हूँ ....... सिर्फ़
.
.
.समाधान !!!
______________ डॉ. प्रतिभा स्वाति
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