शनिवार, अगस्त 27, 2016
रविवार, अगस्त 21, 2016
शनिवार, अगस्त 20, 2016
खोज रही हूँ /समाधान !
ये एक दर्जन आँखें
कर रही हैं मुझसे
सैकड़ों सवाल !
और मैं निरुत्तर .....
बात सवाल या
जवाब की नहीं
दरअसल अहम
वो मुद्दा है जो
उठ रहा है ....
इंसानियत का !
इंसां की नीयत का !
इनसान हूँ , तो फ़िर
मेरा फ़र्ज़ है , आख़िर
देना सवालों के जवाब ?
लेकिन मैं नहीं देती
दे सकती हूँ जवाब !
मग़र ... अब नहीं
खोज रही हूँ ....... सिर्फ़
.
.
.समाधान !!!
______________ डॉ. प्रतिभा स्वाति
बुधवार, अगस्त 17, 2016
happy rakhi
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रात समय वह मेरे आवे। भोर भये वह घर उठि जावे॥
यह अचरज है सबसे न्यारा। ऐ सखि साजन? ना सखि तारा॥
यह अचरज है सबसे न्यारा। ऐ सखि साजन? ना सखि तारा॥
नंगे पाँव फिरन नहिं देत। पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत॥
पाँव का चूमा लेत निपूता। ऐ सखि साजन? ना सखि जूता॥
पाँव का चूमा लेत निपूता। ऐ सखि साजन? ना सखि जूता॥
वह आवे तब शादी होय। उस बिन दूजा और न कोय॥
मीठे लागें वाके बोल। ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल॥
मीठे लागें वाके बोल। ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल॥
जब माँगू तब जल भरि लावे। मेरे मन की तपन बुझावे॥
मन का भारी तन का छोटा। ऐ सखि साजन? ना सखि लोटा॥
मन का भारी तन का छोटा। ऐ सखि साजन? ना सखि लोटा॥
बेर-बेर सोवतहिं जगावे। ना जागूँ तो काटे खावे॥
व्याकुल हुई मैं हक्की बक्की। ऐ सखि साजन? ना सखि मक्खी॥
व्याकुल हुई मैं हक्की बक्की। ऐ सखि साजन? ना सखि मक्खी॥
अति सुरंग है रंग रंगीलो। है गुणवंत बहुत चटकीलो॥
राम भजन बिन कभी न सोता। क्यों सखि साजन? ना सखि तोता॥
राम भजन बिन कभी न सोता। क्यों सखि साजन? ना सखि तोता॥
अर्ध निशा वह आया भौन। सुंदरता बरने कवि कौन॥
निरखत ही मन भयो अनंद। क्यों सखि साजन? ना सखि चंद॥
निरखत ही मन भयो अनंद। क्यों सखि साजन? ना सखि चंद॥
शोभा सदा बढ़ावन हारा। आँखिन से छिन होत न न्यारा॥
आठ पहर मेरो मनरंजन। क्यों सखि साजन? ना सखि अंजन॥
आठ पहर मेरो मनरंजन। क्यों सखि साजन? ना सखि अंजन॥
जीवन सब जग जासों कहै। वा बिनु नेक न धीरज रहै॥
हरै छिनक में हिय की पीर। क्यों सखि साजन? ना सखि नीर॥
हरै छिनक में हिय की पीर। क्यों सखि साजन? ना सखि नीर॥
बिन आये सबहीं सुख भूले। आये ते अँग-अँग सब फूले॥
सीरी भई लगावत छाती। क्यों सखि साजन? ना सखि पाति॥
- अमीर खुसरो
सीरी भई लगावत छाती। क्यों सखि साजन? ना सखि पाति॥
- अमीर खुसरो
सोमवार, अगस्त 01, 2016
दम्भ ......
सुना सबने है ,पर
कौन कहता है ?
कि दम्भ / सिर्फ़
इंसान में रहता है !
आज अभी की या,
या रोज़ की बात है !
हवा /पानी /धूप सब
प्रकृति की सौग़ात है !
बारिश के बाद
मुस्कुराया सूरज !
अलबत्ता दो दिन
बाद आया सूरज !
बड़े नेह से उसने ,
भेजा ,धरा की ओर !
किरण को थमाके,
सुनहली धूप का छोर!
पर ये क्या ,अरे
घूप रुक गई है !
बेजान इमारत के ,
आगे झुक गई है !
इमारत नहीं ,दम्भ है
देखो ,तनके खड़ा है !
आसमाँ और सूरज ,
क्या दोनों से बड़ा है ?
प्रकृति को बेअदबी
मंज़ूर नहीं !
कोप /रोष - अंजाम
वो दिन दूर नहीं !
इनसान सब जानता है
फिर भी वही करता है !
कुदरत ढाती है कहर ,
फ़िर बेमौत मरता है !
-------------------डॉ .प्रतिभा स्वाति