सोमवार, मई 30, 2016

वो मौसम है ....






मेरे  दिल का टुकड़ा ही , मुझको छलता है !
जैसे कोई  मौसम है , जो रोज़  बदलता है !

इक  गुनाह  माफ़ करती हूँ , आह भूलकर !
 और इक  को भूल जाती हूँ , चाह  भूलकर !

पर वो  बदगुमान  इस कदर हो गया  है !
जिसे दिया था  जनम ,  वो  खो गया है !

__________________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति





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