शुक्रवार, अप्रैल 22, 2016

अब हुआ मालूम मुझे ...

 जब से होश सम्हाला यही सुनती आई कि ,हर सिक्के के दो पहलू होते हैं - एक तरफ फ़र्ज़ दूसरी तरफ हक़ ! और मैंने इसपर यकीन भी कर लिया :)
--------------- १९८४  से  २०१६ तक मैं इसी के  मुताबिक फ़र्ज़ अदा करती रही , कि हक़ मिल ही जाएँगे ! आज नहीं तो कल . देर होगी अंधेर नहीं . घुटना पेट को ज़ुरूर झुकेगा .मगर  अफ़सोस ...... ऐसा कुछ भी नहीं हुआ !
______ तब मैंने 'मन का धन ' करने के लिए बहुत सर्वे और सलाहें बटोरीं ....पर वही - ढाक के तीन पात ....न -न  मैं हारी नहीं हूँ !एक बात मगर अब समझ आ गई है - फ़र्ज़ अदा करने पर हक़ अगर हासिल ना हो तो , बस दो ही option हैं ---------- हक़ छोड़ दो , या छीन लो :)
________ ३० साल तक हक़ छोड़ती आई माँ ने अब जाके ये निर्णय लिया की वो अपने हक़ छीनकर हासिल करेगी :)
----------- देर आयद / दुरुस्त आयद :)
 "फ़र्ज़ अदा करने वालों ......हक़ के हासिलात  भी जुरुरी हैं ;) "
_______ डॉ . प्रतिभा स्वाति

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