बुधवार, जून 10, 2015

कहते हैं किनारे .....


























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 आजकल कहते हैं किनारे ....
रोज़ ही मज़धार के क़िस्से !
भंवर को भरमाया  उसीने ....
न कुछ आया उनके हिस्से !
_________________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति

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