गुरुवार, जनवरी 08, 2015

रात और मैं

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        अक्सर मैं ख़ुद से बात करने के लिए वक्त की तलाश करती हूँ . और वो वक्त मिलता है / आधी रात को ! जब ,सब सो रहे होते हैं ! ख़्वाब में खोए होते हैं ......तब ...नि:शब्द रात ,और मैं ! कितनी सारी बातें होती हैं , हमारे बीच !कितने  सारे सवाल !कितने सारे ख़्वाब ......जो मैं और मेरी रातें , जागकर देखा करते हैं !
__________ जो सो रहे होते हैं , उन्हें कहाँ मालूम है __ रात कब ,कोई सितारा  आसमान से टूटकर धरती से आ मिला ! कब- कब चाँद ने अपना मुख शांत समन्दर में देखा ! कब ज्वार उठा ! कब .... मुझे भी कहाँ पता हैं सब बातें :) पर जितने करीब से मैंने देखा और जाना  है रात को .....उसके लिए मेरा जागते रहना ज़ुरूरी था ! .....नींद की परियों का क्या / वो बिना कोई शिकायत किये ,दिन में भी चली आती हैं !
____________ डॉ. प्रतिभा स्वाति  

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