गुरुवार, अक्तूबर 17, 2013

कबिरा....


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कबीरा आईना  साफ़ है !
ग़ालिब  कहते  धूल !
सोच-समझ का फ़ेर है ,
बहस निरी - निर्मूल !!
                                      डॉ . प्रतिभा स्वाति
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